सुल्तानपुर का इतिहास कुशभवनपुर, कुशपुर, कुशपुरा, कुशावती सुल्तानपुर In Hindi

गोमती के किनारे का यह क्षेत्र कुश-काश के लिए प्राचीन काल से ही प्रसिद्ध है, कुश-काश से बनने वाले बाध की प्रसिद्ध मंडी यही पर है । प्राचीन काल मे सुलतानपुर का नाम कुशभवनपुर था जो कालांतर मे बदलते बदलते सुलतानपुर हो गया। उत्तर प्रदेश का 69वें जिले के रूप में जाना जाता है सुल्तानपुर।

वैदिक काल Sultanpur Story: वैदिक काल में सुल्तानपुर महर्षि वाल्मीकि, दुर्वासा वशिष्ठ आदि ऋषि मुनियों की तपोस्थली रही है। सुल्तानपुर का वैदिक नाम कुशभवनपुर था जो की धीरे धीरे समय परिवर्तन के साथ सुल्तानपुर हो गया। 

कुशभवनपुर से सुल्तानपुर: पौराणिक मान्यता के अनुसार सुल्तानपुर (कुशभवनपुर) को गोमती नदी के तट पर मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान् श्री राम के पुत्र कुश द्वारा बसाया गया था इसलिए सुल्तानपुर को कुशभवनपुर, कुशपुर, कुशपुरा, कुशावती इत्यादि नामों से जानते थे।जो कालांतर मे बदलते बदलते सुलतानपुर हो गया। सुल्तानपुर अनेक नाम से सु-शोभित है जैसे कुशभवनपुर, कुशपुर, कुशपुरा, कुशावती आदि पर्यायवाची नाम ही सुल्तानपुर के विशेषता है। 

त्रेता युग में सुल्तानपुर: जिला सुल्तानपुर में गोमती के एक तट पर सीताकुंड है जहां देवी सीता ने अपने पति (भगवान् राम) के साथ अपने निर्वासन के दौरान स्नान किया था। चैत्र और कार्तिक मास में यहाँ स्नान और मेले आयोजित किए जाते है।

सीताकुंड: पौराणिक मान्यतानुसार सुल्तानपुर में जहाँ जनक पुत्री सीता जी ठहरी थीं, जगत जननी सीता की याद में आज भी सीताकुंड घाट की स्थापना की गयी है।

अघोरियों का तीर्थस्थल 5000 वर्ष पुराना: अघोर पीठ बाबा सत्यनाथ मठ जो कादीपुर चौराहे से चांदा मार्ग पर अल्देमऊ नूरपुर गांव में आदि गंगा गोमती के पावन तट पर स्थित है। अघोरियों का यह प्रमुख साधना केंद्र अब भी बहुत से रहस्य समेटे हुए है। यह स्थान अघोर परंपरा के नव नाथो में प्रथम नाथ ब्रम्हा के अवतार बाबा सत्यनाथ की साधना व समाधि स्थल है। लगभग 5000 साल पुराना महाभारत काल का स्थल अघोरियों के साधना का प्रमुख स्थल है। शैव साधक और अन्य जनसामान्य के लिए यह स्थान किसी भी तीर्थ से कम नहीं है।

ईस्ट इन्डिया कंपनी की स्थापना 31 दिसंबर 1600: सोलहवीं शताब्दी जब अंग्रेज भारत आये तो उन्होंने ईस्ट इंडिया कम्पनी की स्थापना की और धीरे धीरे पूरे भारत पर कब्जा कर लिया, लेकिन फिर भी अंग्रेजो द्वारा भारत पर कब्ज़ा करने के बाद भी पुरे एक साल पूरे सुल्तानपुर स्वतंत्र रहा।

चीनी यात्री ह्वेनसांग: ह्वेनसांग इसी भूभाग से होकर साकेत गया था। चीनी यात्री ह्वेनसांग ने इस नगर को कियाशोपोलो माना है। कनिष्क के कार्यकाल सन ( 78 से 102 ईस्वी ) तक में यहां जनपद बौद्ध धर्म का केंद्र था। उसके शासनकाल के सिक्के सन 1907 ईस्वी में ग्राम मोईली तहसील सदर से प्राप्त हुए थे। ह्वेनसांग ने लिखा है कि उनके समय में यहाँ पर अशोक के द्वारा निर्मित बड़े स्तूप स्थित थे और बुद्ध ने यहां छह महीने तक शिक्षा दी थी।

बहरों के आधिपत्य: हर्ष के शासनकाल के पश्चात यह भूभाग बहरों के आधिपत्य में आ गया था। इसे भरों के राजा ईश ने इसौली, कूंड़ ने कूड़ेभार तथा अलदे ने अलदेमऊ बसाया था। यहां सभी राजा कन्नौज के गुर्जर प्रतिहारों के अधीन थे। जयचंद के पराभव के पश्चात भर शासक स्वतंत्र हो गए। गहरवार कालीन सिक्के भी गढ़ा के भग्नावशेषों से प्राप्त हुए थे, जो कुड़ेभार रियासत की तत्कालीन भुनेश्वरी देवी के पास सुरक्षित थे।

सुलतानपुर आने वाला पहला मुसलमान था हिसामुद्दीन: हिसामुद्दीन पहला मुसलमान था जो सुलतानपुर में पहली बार आया था। यहीं से कुशभवनपुर पर मुस्लिम आधिपत्य शुरू हो गया। इसी समय सुलतान के नाम पर कुशभवनपुर सुलतानपुर हो गया।

खिलजी वंश 1290-1320: 14वीं शताब्दी में खिलजी वंश के शासक जब यहां व्यापार करने आए तो स्थानीय शासकों से उनका युद्ध हुआ। इसमें खिलजी वंश के सुलतान विजयी हुए। इसीलिए अपने प्रभुत्व का एहसास हमेशा के लिए इतिहास में दर्ज कराने के मकसद से उन्होंने कुशभवनपुर का नाम बदलकर सुलतानपुर कर दिया। साक्ष्य के तौर पर गजेटियर, क¨न्हघम, महाकवि कालीदास, लेखक तारकेश्वर ¨सह इत्यादि की किताबों को भी साक्ष्य के तौर पर प्रस्तुत किया है। क्योंकि इसमें भी बताया गया है कि सुलतानपुर का पुराना नाम कुशभवनपुर ही था।

खिलजी वंश के अलाउद्दीन खिलजी के शासनकाल में उसके भतीजे सुल्तान खिलजी के नाम पर कुशभवनपुर का नाम बदलकर सुल्तानपुर कर दिया गया था।

अकबर 1248: कथन प्रमाण के आधार पर दिल्ली के बादशाह पृथ्वीराज चौहान के भाई चाहिरदेव के वंशज बरियार शाह आये। जमुवावा गांव में उन्होंने अपनी गढ़ी बनवाया। सन 1364 ईसवी में मलिक सरवर ख्वाजा ने जौनपुर शर्की सल्तनत की आधारशिला रखी। पी कारनेगी को धोपाप व शाहगढ़ में शर्की के अनेक सिक्के मिले थे। इससे स्पष्ट है कि सुलतानपुर शर्की शासकों के अधीन था।

शेरशाह सूरी ने हुमायूं 1539-40: जब शेरशाह सूरी ने हुमायूं को पराजित किया तो वत्सगोत्रीय बरियार शाह के वंशजों में नरवलगढ़ ( अब हसनपुर ) के राजा त्रिलोकचंद थे, जिन्होंने बाबर के समय ही मुस्लिम धर्म स्वीकार कर लिया तथा अपना नाम तातारखां रख लिया। अकबर के समय में सुलतानपुर कई मुहालों में बंटा हुआ था।

उन्नीसवीं शताब्दी: शुरुआत में बाबू माधो सिंह, जिव नारायन के वंशज में ग्यारहवें स्थान पर, जिस संपत्ति के शासक थे उसमें 101 गांव शामिल थे। बाबू माधो सिंह जिन्हें सफल राजा के रूप में याद किया जाता है और जिन्होंने अपनी संपत्ति का सफल प्रबंधन किया, की मृत्यु 1823 में हुई थी।

1857 स्वतंत्रता संग्राम क्रांति: स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में सुलतानपुर का अहम स्थान रहा है। 1857 के स्वाधीनता संग्राम मे क्रांतकारियों ने ब्रिटिश साम्राज्यवाद को उखाड़ फेकने मे जान की बाजी लगाकर अंग्रेज़ो से मोर्चा लिया। 9 जून 1857 को सुलतानपुर के तत्कालीन डिप्टी-कमिश्नर की हत्या कर इसे स्वतंत्र करा लिया गया था।

गजेटिएर का इतिहास 1903: सुल्तानपुर में राजपूत परिवारों का स्वामित्व अधिकांश भूमि पर था| इनके पास कुल भूमि क्षेत्र का 76.16 प्रतिशत था। उनमें से राजाओं का जिले के एक चौथाई हिस्से पर अधीकार था साथ-साथ उनके रिश्तेदारों, बचगोटीस और रजवाड़ों का क्रमश: 11.4 और 3.4 प्रतिशत पर अधिकार था। राजघराने लगभग पूरे अल्देमऊ के मालिक थे।

1921 स्वतंत्रता संग्राम क्रांति: इस समय हो रहे किसान आंदोलन मे इस जनपद ने खुलकर भाग लिया।

1930 से 1942 क्रांति: तक के सभी आंदोलनो मे यहा के स्वतंत्रा सेनानियो ने जिस शौर्य एवं वीरता का परिचय दिया वो ऐतिहासिक है। किसान नेता बाबा राम चंद्र और बाबा राम लाल इस संदर्भ मे उल्लेखनीय है, जिनके त्याग का वर्णन प. जवाहर लाल नेहरू ने अपनी आत्मकथा मे किया है।

अमेठी-सुल्तानपुर का सम्बन्ध: सुल्तानपुर जिले की तीन तहसील मुसाफिरखाना, अमेठी, गौरीगंज को मिलाकर अमेठी में जोड़ दिया है।

सुलतानपुर की उपलब्धियां: शिक्षा, साहित्य एवं संस्कृति के क्षेत्र में सुलतानपुर की अपनी उपलब्धियां हैं।

शिक्षा: शिक्षा के क्षेत्र में बाबू केएन सिंह ने केएनआईपीएसएस कमला नेहरू तकनीकी संस्थान की स्थापना कर अप्रतिम कार्य किया एवं पंडित राम किशोर त्रिपाठी के प्रयास भी शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण रहे। इन मनीषियों द्वारा स्थापित संस्थाएं जनपद के चतुर्मुखी विकास में मील का पत्थर हैं।

साहित्य: साहित्य के क्षेत्र में मलिक मोहम्मद जायसी, गुरुदत्त सिंह जैसे पुरातन कवियों की भी यही कर्मस्थली थी। राष्ट्रीय आंदोलन के महान कवि पंडित रामनरेश त्रिपाठी का भी यह गृह जनपद है। प्रगतिवादी कविता व शायरी के सशक्त कवि त्रिलोचन एवं मजरूह सुल्तानपुरी का वास्ता इसी माटी से है। चर्चित कथाकार संजीव, शिवमूर्ति, अखिलेश, अजमल सुल्तानपुरी इसी धरती की उपज हैं।

संस्कृति: सांस्कृतिक एवं पुरातात्विक महत्व के अनगिनत स्थल जनपद के कोने-कोने में मौजूद हैं, जहां पर अवशेषों लेकर मूर्तियों के रूप में सम्पदा बिखरी पड़ी हैं

कुशभवनपुर उत्थान सेवा समिति: “कुशभवनपुर उत्थान सेवा समिति” विगत 6 वर्षों से अपने नगर एवं जनपद की पौराणिक पहचान नाम को पुनः प्राप्त करने के लिए यह आंदोलन शुरू किया गया था समिति के कार्यकारिणी सदस्यों द्वारा ज्ञात हुआ की नाम बदलने के प्रक्रिया राज्य सरकार के संज्ञान में है।

सुल्तानपुर क्यों प्रसिद्ध है ?

सुल्तानपुर के प्रमुख दर्शनीय स्थल:

विक्टोरिया मंज़िल
क्राइस्ट चर्च
चिमनलाल पार्क
पारिजात वृक्ष
सुंदरलाल मेमोरियल हाल
विजेथुआ महावीरन
धोपाप मंदिर
बिजेथुआ महावीरन मंदिर
विजेथा
कोटव धाम
लोहरामऊ
कोइरीपुर
सतथिन शरीफ
लोहरामऊ मां भवानी मन्दिर
गढ़ा (केशिपुत्र कलाम)
कोटव
सतथिन शरीफ
गोरीशंकर धाम
बिलवाई
करिया बझना
कोइरीपुर

सुल्तानपुर के इतिहास में प्रसिद्ध / अवधि और तिथि
सुल्तानपुर के इतिहास की मुख्य घटनाएँ और विषय
विवरण में सुल्तानपुर के इतिहास में उपलब्धियां

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