चित्रकूट का अनोखा इतिहास
चित्रकूट की गौरवशाली एवं वैभवशाली गाथा
चित्रकूट का गौरव इतिहास: चित्रकूट का इतिहास, ऐतिहासिक दृष्टि से जनपद चित्रकूट का अतीत अत्यंत गौरवशाली और महिमामंडित रहा है। हिन्दू मुस्लिम सांप्रदायिक सदभाव, आध्यात्मिक, वैदिक, पौराणिक, शिक्षा, संस्कृति, संगीत, कला, सुन्दर भवन, धार्मिक, मंदिर, मस्जिद, ऐतिहासिक दुर्ग, गौरवशाली सांस्कृतिक कला की प्राचीन धरोहर को आदि काल से अब तक अपने आप में समेटे हुए चित्रकूट का विशेष इतिहास रहा है। परिवर्तन के शाश्वत नियम के अनेक झंझावतों के बावजूद चित्रकूट अस्तित्व अक्षुण्य् रहा है।
चित्रकूट का गौरव
चित्रकूट का अर्थ: मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश की सीमा पर बसी संतो की नगरी को चित्रकूट कहते हैं। चित्रकूट शब्द संस्कृत भाषा का है। जिसमें चित्र का अर्थ दृश्य तथा कूट का अर्थ पर्वत होता है, इसका अर्थ होता है पर्वतीय दृश्यों का अनुपम केंद्र।
चित्रकूट उत्तर प्रदेश: चित्रकूट उत्तर प्रदेश राज्य का एक जिला एवं लोकसभा क्षेत्र है। चित्रकूट धाम इसका मुख्यालय है। चित्रकूट उत्तर प्रदेश राज्य में 38.2 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में विस्तृत है। चित्रकूट ऐतिहासिक दृष्टि से भी यह काफ़ी महत्त्वपूर्ण स्थल है। चित्रकूट एक मनोरम, शांत और सुन्दर प्राकृतिक स्थान है।
चित्रकूट का प्राचीन इतिहास: चित्रकूट प्राचीन काल में कौशल साम्राज्य का अभिन्न अंग था। भारतवर्ष अपनी विविधताओं के साथ अपना गौरवशाली इतिहास को समेटे हुये है, ऐतिहासिक दृष्टि से जनपद चित्रकूट का अतीत अत्यंत गौरवशाली रहा है। पुरातात्विक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, भौगोलिक तथा औध्योगिक दृष्टि से चित्रकूट का अपना विशिष्ट स्थान है। चित्रकूट के उत्पत्ति का इतिहास निम्न प्रकार से है। इतिहास में चित्रकूट की आज तक की जानकारी।
चित्रकूट की भाषा: चित्रकूट की लोकल भाषा बुंदेली अथवा बुंदेलखंडी है। इसके आलावा चित्रकूट में हिन्दी, संस्कृत, अंग्रेजी, अवधी एवं ब्रिज भाषा भी बोली जाती है।
वैदिक काल: चित्रकूट में ही ऋषि अत्री और सती अनसुइया ने ध्यान लगाया था। ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने चित्रकूट में ही सती अनसुइया के घर जन्म लिया था।
चित्रकूट का पौराणिक इतिहास: वेद पुराण के अनुसार चिटकूट अपनी पौराणिक प्रतिभा, संतो की नगरी, आध्यात्मिक विश्वास के साथ स्वयं ईश्वर को जन्म लेने का सौभाग्य प्राप्त कर चुका है। चित्रकूट की धरती ऋषि मुनियों की जन्म स्थली, तपोभूमि के साथ साथ मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम, सीता मैया एवं लक्षमण को वनवास के समय अनेक ऋषियों के साथ योग, जप, तप एवं आध्यात्मिक ज्ञान करने का अवसर प्रदान किया था। चित्रकूट चारों ओर से विन्ध्य पर्वतमाला और अरण्यों से घिरा हुआ है। यहाँ मंदाकिनी नदी के किनारे बने अनेक घाट और मंदिरों में वर्ष भर श्रद्धालुओं का आवागमन होता रहता है। यह मान्यता है कि श्रीराम ने सीता और अपने अनुज लक्ष्मण के साथ वनवास के 14 वर्ष यहीं व्यतीत किए थे। यहीं पर ऋषि अत्रि और सती अनसुइया ने ध्यान लगाया था। चित्रकूट ही वह स्थान था, जहाँ ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने अनुसूया के यहाँ जन्म लिया।
भगवान राम का चित्रकूट से सम्बन्ध: मंदाकिनी नदी के तट पर बसा चित्रकूट का धाम भारत के सबसे प्राचीन तीर्थस्थलों में से एक है। यह मान्यता है कि भगवान श्रीराम ने माता सीता और अपने छोटे भाई लक्ष्मण के साथ वनवास के 14 में से 11 वर्ष चित्रकूट व्यतीत किए थे।
रामायण में महाकवि तुलसीदास द्वारा चित्रकूट धाम की महिमा का वर्णन: रामायण में चित्रकूट धाम की महिमा का वर्णन किया गया है। गोस्वामी तुलसीदास ने लिखा है कि कलयुग संसार के सभी स्थानों पर छा जाएगा परंतु भगवान राम की महिमा से चित्रकूट पर कलयुग का प्रभाव नहीं होगा। महाकवि तुलसीदास ने रामचरितमानस (अयोध्या काण्ड) में चित्रकूट का बड़ा मनोहारी वर्णन किया है।
‘रघुवर कहऊ लखन भल घाटू, करहु कतहुँ अब ठाहर ठाटू।
लखन दीख पय उतरकरारा, चहुँ दिशि फिरेउ धनुष जिमिनारा।
नदीपनच सर सम दम दाना, सकल कलुष कलि साउज नाना।
चित्रकूट जिम अचल अहेरी, चुकई न घात मार मुठभेरी’।
साधुओं और संतों की आध्यात्मिक स्थली चित्रकूट: चित्रकूट साधुओं, संतों और हजारों भिक्षुओं की आध्यात्मिक स्थल रहा है। यंहा साधु, संत अपनी तपस्या, साधना, योग, और विभिन्न कठिन आध्यात्मिक प्रयासों के माध्यम से विश्व पर लाभदायक प्रभाव डाला है। अत्री, अनुसूया, दत्तात्रेय, महर्षि मार्कंडेय, सारभंग, सुतीक्ष्ण और विभिन्न अन्य ऋषि, संत, भक्त और विचारक सभी ने इस क्षेत्र में अपनी आयु व्यतीत की और जानकारों के अनुसार ऐसे अनेक लोग आज भी यहाँ की विभिन्न गुफाओं और अन्य क्षेत्रों में तपस्यारत हैं। प्रत्येक अमावस्या में यहाँ विभिन्न क्षेत्रों से लाखों श्रृद्धालु एकत्र होते हैं। सोमवती अमावस्या, दीपावली, शरद-पूर्णिमा, मकर-संक्रांति और राम नवमी यहाँ ऐसे समारोहों के विशेष अवसर हैं। चित्रकूट शांत और सुंदर आध्यात्मिक स्थान है, यह आपको कण कण में श्री राम कि अनुभूति होगी।
चित्रकूट का आधुनिक इतिहास: उत्तर प्रदेश में 6 मई 1997 को यूपी की मायावती सरकार ने इन तहसीलों को बांदा जनपद से अलग कर दिया यानि कर्वी और मऊ तहसील बांदा जिले से अलग कर दी गईं। इन्हें अलग करके एक नया जिला बनाया गया जिसका नाम छत्रपति शाहू जी महाराज नगर रखा गया।
छत्रपति शाहू जी महाराज नगर से चित्रकूट नाम कब पड़ा: 4 सितंबर 1998 को यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने इस जिले का नाम छत्रपति शाहू जी महाराज नगर से बदल कर चित्रकूट कर दिया। चित्रकूट उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश राज्यों में फैली उत्तरी विंध्य श्रृंखला में स्थित है। बाद में यूपी सरकार ने कर्बी और मउ तहसील के कई गांवों को काटकर दो नई तहसीलों का निर्माण किया। जिनका नाम राजापुर और मानिकपुर है। यानि चित्रकूट जिले में 4 तहसीलें आती हैं कर्वी, मऊ, मानिकपुर और राजापुर। इस जनपद को पांच विकासखंडों यानि ब्लॉकों में बांटा गया है। जिनके नाम कर्वी, मऊ, पहाड़ी, राजापुर और मानिकपुर हैं।
जैन साहित्य एवं बौद्ध ग्रंथ में चित्रकूट का वर्णन: जैन साहित्य में भी चित्रकूट का वर्णन किया गया है। बौद्ध ग्रंथ ललितविस्तर में भी चित्रकूट की पहाड़ी का उल्लेख है
भगवती टीका में चित्रकूट का वर्णन: भगवती टीका में चित्रकूट को ‘चित्रकुड़’ कहा गया है।
कालिदास का चित्रकूट वर्णन: कालिदास ने रघुवंश में चित्रकूट का वर्णन किया है।
‘चित्रकूटवनस्थं च कथित स्वर्गतिर्गुरो: लक्ष्म्या निमन्त्रयां चके तमनुच्छिष्ट संपदा’।
‘धारास्वनोद्गारिदरी मुखाऽसौ श्रृंगाग्रलग्नाम्बुदवप्रपंक:, बध्नाति मे बंधुरगात्रि चक्षुदृप्त: ककुद्मानिवचित्रकूट:’।
चित्रकूट क्यों प्रसिद्ध है ?
चित्रकूट के प्रमुख दर्शनीय स्थल:
- रामघाट चित्रकूट
- कामदगिरि पर्वत चित्रकूट
- जानकी कुण्ड चित्रकूट
- भरतकूप चित्रकूट
- भारत मिलाप मंदिर चित्रकूट
- सती अनुसूया अत्रि आश्रम चित्रकूट
- गुप्त गोदावरी चित्रकूट
- हनुमान धारा चित्रकूट
- स्फटिक शिला चित्रकूट
- राम दर्शन चित्रकूट
- गणेश बाग चित्रकूट जो मिनी खजुराहो के नाम से प्रसिद्ध है।