कुम्हार जाति का इतिहास-गोत्र, उत्पत्ति, वर्ण,श्रेणी, सामाजिक, राजनितिक स्थिति Kumbhar Jati ka itihas

कुम्हार जाति का इतिहास: कुम्हार जाति का सम्पूर्ण इतिहास मानव सभ्यता के विकास में परिचय का मोहताज नहीं है। पाषाण काल से लेकर आधुनिक काल तक विश्व पटल पर कुम्हार समुदाय का एक विशेष स्थान रहा है। प्रस्तुत लेख में हम आप को कुम्हार जाति का परिचय, उत्पत्ति, कुम्हार राजवंश, महत्वपूर्ण कार्य, सामाजिक एवं राजनितिक स्तर, कुम्हार जाति की जनसंख्या आदि  की जानकारियों  का विवरण विस्तार से देंगे।  Kumbhhar Jati Jankari.

कुम्हार जाति के गोत्र

कुम्हार जाति के गोत्र:   कोहार  जाती के मुख्य गोत्र छाया, बुहेचा, दाभी, डोडिया, फतनिया, गढेर, गढ़िया, गिरनार, गोला, जोगिया, कटारिया, कुकाडिया, मंडोरा, नेना, परमार, राठौड, सवानिया, टांकी, वर्दना, विसवादिया, भारद्वाज, चंदेग्रा, चित्रोदा, देवलिया, धवरिया, गढ़वाना, गोहिलो, जगतिया, कमलिया, खोलिया, लाडवा, मवादिया, ओझा, पिथिया, रावती, शिंगड़िया, वढेर आदि कुम्हार जाती के मुख्य है।

कुम्भार वंशावली

कुम्हार जाति का इतिहासकुम्हार जाति का शानदार और भव्य इतिहास
कुम्हार जाति उत्पत्ति; शास्त्रों के अनुसार कुम्हार जाति की उत्पत्ति भगवान ब्रम्हा के द्वारा हुई।
वंश कुम्हार वंश
कुम्हार वंशावली कुम्हार वंशावली को प्रजापत, कुंभकार, कुंभार, कुमार, कुभार, भांडे आदि नामों से भी जाना जाता है
कुम्हार जाति की कुलदेवी व कुलदेवता कुम्हार वंश की कुलदेवी श्रीयादे माता है
कुम्हार जाति के कुल देवता कुम्हार जाति के कुल देवता भगवान विट्ठल एवं देवी रेणुका माता (येलम्मा मंदिर) जी है।
कुम्हार जाति का गीत कोहरौही गीत कुम्हार जाती का ऐतिहासिक/ सामाजिक, सांस्कृतिक लोकगीत है
कुम्हार जाति के गोत्र फतनिया, छाया, सवानिया, गिरनार, वर्दना, चित्रोदा, जोगिया, कटारिया, गोला, कुकाडिया, परमार, नेना, राठौड, टांकी, विसवादिया,मंडोरा भारद्वाज, चंदेग्रा, देवलिया,बुहेचा धवरिया, गढ़वाना, गोहिलो, जगतिया, दाभी खोलिया, लाडवा, मवादिया, ओझा, पिथिया, रावती, शिंगड़िया, वढेर,गढेर, गढ़िया, डोडिया, कमलिया
कुम्हार जाति का पेशा सामान्यतया कुम्हार समाज के लोगो का मुख्य पेशा मिट्टी के बर्तनो को बनाना।
धर्म कुम्भकार प्रजापति जाति सम्पूर्ण भारत में हिन्दू /मुस्लिम/सिख सभी धर्म में पाई जाती है
प्रजापति दिवस कब मनाया जाता है?महाराज दक्ष प्रजापति की जयंती 27 जुलाई को मनाई जाती है.
हिन्दू धर्म में कुम्हार जाति का स्थान अन्य पिछड़ा जाति और अनुसूचित जाति
कुम्हार, कुम्भकार शब्द का उद्भवकुम्भकार शब्द का उद्भव संस्कृत के शब्द “कुंभ”+”कार” से हुआ है. “कुंभ” का अर्थ होता है घड़ा या कलश. “कार’ का अर्थ होता है निर्माण करने वाला या बनाने वाला अर्थात कारीगर इस तरह से कुम्भकार का अर्थ है- “मिट्टी से बर्तन बनाने वाला”.
कुम्हार समुदाय का प्रमुख निवास स्थान भारत, नेपाल और पाकिस्तान
सभ्यता की शुरुआत से ही दैनिक उपयोग में इनका योगदानमिट्टी की सभी वस्तुओं का निर्माण इन्ही के द्वारा ही किया जाता रहा है
कुम्हार जाति की विवाह प्रथा सहगोत्रीय विवाह एवं समगोत्रीय वैवाहिक प्रथा
राजनैतिक स्थित देश में कुम्हार जाति की राजनैतिक स्थित जनसँख्या के आधार पर ठीक नहीं है राजनैतिक छेत्र में कुम्हार जाति का प्रतिनिधित्व न के बराबर है।
सामाजिक स्थितकुम्हार समाज में अत्यधिक गरीबी व अशिक्षा के कारण सामाजिक छेत्र से भी उनकी स्थिति बहुत दयनीय अवस्था में है।
पसंदीदा भोजन कुम्हार समाज के लोग सामान्यतया शाकाहारी और माँसाहारी दोनों प्रकार की होती है।
कुम्हार समाज के लोग क्या मदिरापान करते है। हाँ , अक्सर लोगों को मदिरापान करते देखा गया है।
वस्तु निर्माण प्रसिद्धि कुम्हार समाज के लोगों द्वारा मिट्टी के बर्तन ,मिट्टी के खिलौने ,मिट्टी के सजावटी सामान ,मिट्टी की मूर्तियां आदि बहुत सी चीजें बनायी जाती है।
कुम्हार वंश की उत्पति मिश्रित विवाह द्वारा ब्रह्म वैवर्त पुराण में कुंभकार की उत्पत्ति ब्राह्मण पिता और वैश्य माता से हुई है। इस विवाह को मिश्रित विवाह कहा गया । यद्यपि इसको ज्यादा अहमियत नहीं दी जा सकी।

कुम्हार के जन्मदाता ?

कुम्हार जाति की उत्पत्ति: धर्म शास्त्रों में ऐसा लिखा गया है कि सृष्टि की रचना करते समय अनुष्ठान करने हेतु त्रिदेव अर्थात ब्रह्मा, विष्णु और महेश को मंगल कलश बनाने के लिए एक मूर्तिकार कुम्हार को प्रजापति ब्रह्मा ने उत्पन्न कर उसे मिट्टी का घड़ा बनाने का हुक्म दिया। कुम्हार के कलश निर्माण के लिए भगवान विष्णु ने अपना सुदर्शन चक्र चाक के रूप में, शिव जी ने अपने पिंडी को धुरी के रूप में ब्रह्मा जी ने धागा (जनेऊ), पानी के लिए कमंडल और चक्रेतिया प्रयोग करने के लिए दिया। कुम्हार ने इन वस्तुओं से मंगल कलश का निर्माण किया जिससे अनुष्ठान का कार्य पूर्ण हुआ।

कुम्हार जाति में प्रजापति शब्द कब से आया?

कुम्भकार स्वयं को सम्मानपूर्वक प्रजापति क्यों कहते हैं: एक बार प्रजापति ब्रह्मा ने अपने समस्त बालकों को गन्ना बांटा। जिसे सभी बालकों ने खा लिया, लेकिन कुम्हार ने कार्य में व्यस्तता की वजह उसको वही रख दिया और खाना भूल गया। कुछ दिन बीत जाने पर जिस गन्ने को उसने मिट्टी के ढेर के पास रख दिया था, वह छोटा पौधा बन गया, कुछ समय पश्चात ब्रह्मा जी के द्वारा मांगने कुम्हार ने गन्ने का पूरा पौधा उन्हें भेंट स्वरूप उपहार में दिया। कुम्हकार के इस भेंट से ब्रह्मा जी अत्यधिक हर्षित हो उठे और उन्होंने कुम्हार के कार्य के प्रति लगाव का अवलोकन करके उसे प्रजापति की पदवी से सम्मानित किया. इस तरह से ही कुम्हार समाज को प्रजापति की उपाधि मिली।

कुम्हार जाति की कथा

यह लोककथा पंजाब, राजस्थान और गुजरात में ज्यादा प्रचलित है। कुम्हारों की उत्पत्ति के विषय में मालवा क्षेत्र में भी ऐसी ही कहानिया जानी जाती है। लेकिन यहां मान्यता है कि ब्रह्मा जी ने गन्ने की जगह पान बांटा था।

कुम्हार जाति की गाथा

एक लोककथा के अनुसार जिस प्रकार प्रजापति ब्रह्मा जी ने पंचतत्व आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी (पदार्थ) से सृष्टि की रचना की थी ठीक उसी प्रकार से कुम्हार भी इन्हीं तत्वों‌ से से अपना कार्य करता है। इन्हे प्रतिष्ठित रूप से रचनात्मक कला के बादशाह के रूप में प्रजापति की उपाधि मिली।

दक्ष प्रजापति का ब्राह्मण वंश से विनाश की कथा

प्रजापति/ कुम्हार जाति पतन के कारण: एक यह भी मान्यता है की, दक्ष प्रजापति ब्रह्मा जी की संतान और भगवान भोलेनाथ के श्वसुर थे। ब्रह्मा जी के द्वारा एक सुयोग्य पद पर राज करते हुए वे अत्यंत अभिमानी बन गए। एक कथा के अनुसार एक बार दक्ष प्रजापति ने यज्ञ का आयोजन किया जिसमें ब्रह्मा, नारायण, शिव सहित सभी देवी देवताओं का शुभागमन हुआ जब दक्ष प्रजापति पधारे तो सभी ने खड़े होकर उनका नमन किया। लेकिन ब्रह्मा जी और भगवान भोलेनाथ नहीं खड़े हुए। यह देखकर दक्ष प्रजापति अत्यधिक कुपित होकर बोले ब्रह्मा जी ने तो हमें जन्म दिया है, लेकिन शिव हमारे जमाई हैं उन्हें अपने आसान से उठ जाना चाहिए था उन्होंने शिव जी का भरी सभा में अत्यंत अनादर किया। जिससे क्रुद्ध होकर नंदी ने दक्ष प्रजापति को अभीशाप दिया कि आपके कुल का ब्राह्मण वंश से विनाश हो जाएगा। इस तरह से ही राजा दक्ष के वंशज को ब्राह्मण वंश से अलग कुम्हार या प्रजापति के नाम से जाना जाने लगा।

कुम्हार लोककथा

एक लोककथा के अनुसार जिस प्रकार प्रजापति ब्रह्मा जी ने पंचतत्व आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी (पदार्थ) से सृष्टि की रचना की थी ठीक उसी प्रकार से कुम्हार भी इन्हीं तत्वों‌ से से अपना कार्य करता है। इन्हे प्रतिष्ठित रूप से रचनात्मक कला के बादशाह के रूप में प्रजापति की उपाधि मिली।

वर्ग 

कुम्हार जाती का वर्गीकरण: राज्य सरकार एवं केंद्र सरकार के शासनादेश के अनुसार कुम्हार संप्रदाय को अन्य पिछड़ी जाति एवं कई राज्यों में अनुसूचित जाती के श्रेणी में रखा गया है। । सम्पूर्ण भारत में कुम्हार जाति की जनसंख्या लगभग 60 लाख से ज्यादा है।

कुम्हार जाति विवाह प्रथा

कुम्हार जाति की समगोत्रीय विवाह प्रथा कुम्हार समाज के अंतर्गत सहगोत्रीय/ समगोत्रीय विवाह की प्रथा है लेकिन एक ही कुल में विवाह निषेधित है।


कुम्हार जाति का मुख्य पेशा

कुम्हार समाज के लोगो का मुख्य पेशा मिट्टी के बर्तनो को बनाना।सदियों से ये गगनस्पर्शी शिल्पकार के रूप में जाने जाते है। 

कुम्हार जाति के विषय में महत्वपूर्ण जानकारियां

कुम्हार गगनस्पर्शी शिल्पकार/कारीगर: पाषाण काल से लेकर आधुनिक काल तक विश्व पटल पर कुम्हारो का एक विशेष महत्त्व रहा है। सदियों से मानव के विकास में कुम्हारों का अत्यधिक सहयोग दिखा है। ऐसा माना जाता है की कुम्हार जाति से ही शिल्‍प और अभियांत्रिकी की शुरूआत हुई है। कला का जन्मदाता कुम्हार जाति को ही माना जाता है। कुम्हार जाति को गगनस्पर्शी शिल्पकार या कारीगर वर्ग का जाना जाता रहा है क्यों कि सभ्यता की शुरुआत से ही दैनिक उपयोग के सभी वस्तुओं का निर्माण इन्ही के द्वारा ही किया जाता रहा है। 

कुम्हार जाति का इतिहास/कुम्हार की कुंडली

भारत में लोहार जाति/उपजाति को राज्य की संस्कृति, भौगोलिक स्थिति, कर्म एवं भाषा के आधार पर विभिन्न क्षेत्रों में अनेक नाम/ उपनाम/ गोत्र/ सरनेम से जाना जाता है जो की इस प्रक्रार से हैं:-
राज्य जाति का नाम एवं उपनामवर्ग/श्रेणी
पश्चिमी उड़ीसाभांडे
पूर्वी मध्य प्रदेशभांडे
कश्मीर घाटी कराल
अमृतसरकुलाल या कलाल
आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल और तमिलनाडुकुलाल
पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, महाराष्ट्र, उड़ीसा, बंगाल,प्रजापत, कुंभकार, कुंभार, कुमार, कुभार, भांडेअन्य पिछड़ा वर्ग (OBC)
गुजरात महतो, पाल, भगत, भकत, बेज, बेसरा, माझी, तुम्बलिया, सलबनिया, कुराल, कुम्भकार दास ,प्रजापत, कुंभकार, कुंभार, कुमार, कुभार, भांडेअन्य पिछड़ा वर्ग (OBC)
उत्तर प्रदेशप्रजापत, कुंभकार, कुंभार, कुमार, कुभार, भांडेअन्य पिछड़ा वर्ग (OBC)
बिहार प्रजापत, कुंभकार, कुंभार, कुमार, कुभार, भांडेअन्य पिछड़ा वर्ग (OBC)
मध्य प्रदेश के छतरपुर, दतिया, पन्ना, सतना, टीकमगढ़, सीधी और शहडोलअनुसूचित जाति

कुम्हार जाति का इतिहास- Kohar Jati ka itihas

कुम्हार वंश के अतीत सम्बन्धी प्रश्न उत्तर

कुम्हार जाति की उत्पत्ति कब और कैसे हुई ?

कुम्हार वंश की उत्पत्ति भगवान ब्रम्हा से हुयी है।

कुम्हार वंश का क्या इतिहास है?

कुम्हार वंश के तेजस्वी इतिहास का सम्बन्ध मानव सभ्यता में पाषाण काल से आधुनिक काल तक अलौकिक एवं अतुलनीय रहा है।

कुम्हार जाति किस श्रेणी में आती है?

कुम्भकार जाति OBC श्रेणी में आती है।

कुम्हार जाति के मुख्य कार्य क्या हैं?

कुम्हार वंश का मुख्य कार्य मिट्टी के बर्तनो को बनाना है।

कुम्हार वंश के संस्थापक कौन हैं ?

राजा प्रजापति दक्ष को कुम्हार जाति का संस्थापक माना जाता है।

कुम्हार वंश की स्थापना कब हुई थी?

ऐसा माना जाता है की कुम्हार वंश की स्थापना राजा प्रजापति दक्ष के समय के पश्चात हुई थी।

कुम्हार वंश का सभ्यता की शुरुआत से आधुनिक काल तक क्या योगदान रहा है?

कुम्हार वंश की सभ्यता की शुरुआत से आधुनिक काल तक मिट्टी के बर्तनो को बनाने का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।

कुम्हार वंश के कुल देवी कौन हैं?

कुम्हार जाति की कुलदेवी श्री यादे माता है।

कुम्हार जाति के कुल देवता कौन हैं?

कुम्हार वंश के कुल देवता भगवान् विट्ठल एवं देवी रेणुका माता (येलम्मा मंदिर)जी है।

कुम्हार वंश के कुलगुरु कौन हैं ?

कुम्हार जाति के कुल गुरु श्री संत गोरा कुम्भार जी हैं।

कुम्हार वंश के कौन कौन से गोत्र हैं?

Kumbhkar Jait ki katha/ kumbhkar jati ka sampurn itihas

Kumhar jati ke gotra: छाया, बुहेचा, दाभी, डोडिया, फतनिया, गढेर, गढ़िया, गिरनार, गोला, जोगिया, कटारिया, कुकाडिया, मंडोरा, नेना, परमार, राठौड, सवानिया, टांकी, वर्दना, विसवादिया, भारद्वाज, चंदेग्रा, चित्रोदा, देवलिया, धवरिया, गढ़वाना, गोहिलो, जगतिया, कमलिया, खोलिया, लाडवा, मवादिया, ओझा, पिथिया, रावती, शिंगड़िया, वढेर आदि है।

kumhar jaati etihaas 2024

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