गणेश चतुर्थी का त्यौहार/उत्सव

हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार गणेश चतुर्थी है। यह हरियाली तीज के दूसरे दिन मनाया जाता है जो की भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को पड़ता है। यह उत्सव भारत के लगभग सभी राज्यों में मनाया जाता है किन्तु भारत के दक्षिण दिशा की तरफ इस उत्सव को बड़ी ठाट बाट के साथ मनाया जाता है। वेद शास्त्रों के अनुसार भगवान गणपति का जन्म इसी दिन हुआ। जिसे हम आज गणेश चतुर्थी के रूप में मनाते है। भारत के श्रेष्ठ संपन्न स्थानों पर गणपति भक्तों द्वारा भगवान विघ्न विनाशक गणपति जी की बड़ी प्रतिमा प्रतिष्ठित की जाती है। भक्तों द्वारा नौ दिनों तक इस प्रतिमा की घोर उपासना की जाती है। भक्त दूर से ही बड़ी श्रद्धा से गणपति के दरबार में दौड़े चले आते है। ठीक नौ दिन बाद गणेश प्रतिमा को बड़े धूमधाम से किसी बड़े तालाब, नहर, गंगा जी, महासागर, नदी इत्यादि जल में विसर्जित/छोड़ दिया जाता है।

गणपति का नाम ‘गण’ (पवित्र) और ‘पति’ (प्राणप्रिय) के मिलने से बना है, इसलिए इनका अर्थ होता है ‘शुद्धको के प्राणप्रिय’। गणपति को ‘विघ्नहर्ता’, ‘विनायक’, ‘भालचंद्र’, ‘गजकर्णक’, ‘एकानन’, ‘चतुरानन’, ‘एकदन्त’, ‘दयावान्त’, ‘चार भुजाधारी’ आदि नामों से भी जाना जाता है। इनके वाहन मूषक होते हैं।

गणेश चतुर्थी की शुरुआत की कहानी 

एक बार की बात है, भगवान् शिवजी नहाने के लिए भोगावती नदी के तट पर गए। उनके जाते ही पार्वतीजी ने अपने शरीर पर लगाए हुए उबटन के मैल से एक पुतला बनाया और उसका नाम गणपति’ रखा। पार्वती ने नन्हे पुत्र ‘गणपति से कहा- वत्स ! तुम एक मुगदल लेकर द्वार पर बैठ जाओ। मैं अंदर नहाने जा रही हूँ। जब तक मैं स्नान न कर लूं, तब तक तुम किसी को अंदर मत आने देना।

जब भगवान शिवजी भोगावती में स्नान करने के बाद वापस आए तो गणपति जी ने उन्हें द्वार पर रोक लिया। इसे शिवजी ने अपना तिरस्कार समझा और क्रोध से उनका सिर काट के अंदर चले गए। पार्वती ने उन्हें गुस्से में देखकर समझा कि भोजन में देर होने की वजह से शिव जी गुस्से में हैं। इसलिए उन्होंने तुरंत दो तस्तरियों में भोजन परोसकर शिवजी को बुलाया। तब दो तस्तरियाँ देखकर विस्मित हुए शिवजी ने पूछा- ये दो तस्तरी क्यों ? पार्वती जी बोलीं- पुत्र गणपति के लिए हैं, जिसको मैंने प्रवेश द्वार पर पहरा देने को कहा था। यह सुनकर शिवजी और अधिक अचंभित होकर बोले क्या तुम्हारा ही पुत्र पहरा दे रहा है? पार्वतीजी ने हँसते हुए कहा हाँ स्वामी ! क्या आपने उसे देखा नहीं? देखा तो था, पर मैंने तो अपने रोके जाने पर उसे कोई दुष्ट बालक समझकर उसका गला काट दिया। यह सुनकर पार्वती जी अत्यंत दुखी होकर खाना पीना सब छोड़ दिया उनके दुःख को शांत करने के लिए भगवान शिव ने एक हाथी के बच्चे का सिर काटकर बालक के धड़ से जोड़ दिया और सभी देवताओं ने उन्हें शक्तियां देकर पूज्य गणपति बना दिया। पार्वती जी इस प्रकार पुत्र गणेश को पाकर बहुत खुश हुई। उन्होंने पति तथा पुत्र को आंनदपूर्वक भोजन कराकर बाद में स्वयं भोजन किया। इसी घटना के स्मरण के लिए भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को ‘गणेश चतुर्थी’ पुण्य पर्व के रूप में मनाया जाता है।

व्रत की विधि

गणेश व्रत भाद्रपद-कृष्ण-चतुर्थी से प्रारंभ करके प्रत्येक मास के कृष्णपक्ष की चंद्रोदयव्यापिनीचतुर्थी के दिन व्रत करने पर विघ्नेश्वरगणेश प्रसन्न होकर समस्त विघ्न और संकट दूर कर देते हैं। गणपति की पूजा करने से घर में सुख शांति बनी रहती है। गणेश जी को लकड़ी के चौकी पर पीले या लाल रंग के आसन पर बिठाया जाता है। इनको पीला और लाल रंग के पुष्प चढ़ाया जाता है। गणपति जी को दूर्वा का जोड़ा चढ़ाया जाता है। गणेश जी को हल्दी का चन्दन और लाल सिंदूर चढ़ाया जाता है। धुप बत्ती दिखाकर गाय के घी का दीपक और कपूर जलाकर इनकी पूजा की जाती है तथा मन्त्रों को पढ़ा जाता है।भोग के लिए पंचामृत भी चढ़ाया जाता है। गणेश जी को आखिरी में भोग लगाया जाता है और फिर आरती पढ़ी जाती है।एक कलश भरा गंगा जल,जनेऊ, पांच प्रकार के फल, नारियल, सुपारी, पान, पंचमेवा,हरे मूंग आदि चीजें भी पूजन स्थल पर रखी जाती है।

गणेश जी को दूर्वा अत्यंत प्रिय है अगर आप ने गणपतिपूजन करते समय गणेश जी को दूर्वा अर्पित नहीं किया तो गणेश पूजा अधूरी ही मानी जाती है। दूर्वा को चढ़ाते समय यह भी ध्यान दें की इसको हमेशा विघ्नहरता गणपति के चरणों में नहीं अपितु सर पर चढ़ाया जाता है।विनायक जी को वही दूर्वा चढ़ाई जाती है जिसमें 3 या 5 पत्ती रहती है। दूर्वा करते हुए ये मनंत्र बोलना चाहिए -इदं दुर्वादलम ॐ गं गणपतये नमः। गणेश जी को दूर्वा चढ़ाने के लिए साफ़ सुथरी जगह से ही तोड़ें। ऐसा कहा जाता है की जो पूजन करते समय साफ़ दूर्वा गणपति को समर्पित करता है उसके घर में सुख समृद्धि,धन,ऐश्वर्य सब भर जाता है।

 

गणपति जी का प्रिय प्रसाद या भोग 

आपको बता दें की लम्बोदर का प्रिय भोजन मोदक के लड्डू है गणपति को मोदक के लड्डू बहुत पसंद है आप भोग में इनको यह अर्पित कर सकते है। जब गणपति छोटे थे तो माता पार्वती उनके लिए खीर बनाती थी जो उनको बेहद पसंद था तो आप उनको एक कटोरे या तस्तरी में खीर का भी भोग लगा सकते है। नारियल के लड्डू का भी आप भोग लगा सकते है।

गणपति पूजन करते समय इन मन्त्रों का जाप अवश्य करें।

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥

  • श्री गणेशाय नम:
  • ॐ श्री गणेशाय नम:
  • ॐ गं ॐ गणाधिपतये नम:
  • ॐ लम्बोदराय नमः
  • ॐ विघ्न विनाशकाय नमो नमः
  • ॐ भालचन्द्राय नमः
  • ॐ गं गणपतये नमो नम:
  • ॐ गं गणपतये नम:
  • ॐ गजाननाय नम:
  • ॐ एकदंताय नमो नम:
  • ॐ सिद्धि विनायकाय नम:
  • गणपति बप्पा मोरया, मंगलमूर्ति मोरया।

विघ्नहरता गणपति के बारे में कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां

गणेश चतुर्थी कब है?इस साल गणेश चतुर्थी का त्यौहार 19 सितम्बर, 2023 को आरम्भ होगा और 28 सितंबर, 2023 को विसर्जन के साथ ख़तम होगा।
गणेश चतुर्थी व्रत में क्या खाया जाता है?गणेश चतुर्थी व्रत में पूजा के बाद भी अन्न,नमक खाना वर्जित होता है। आप केवल फलाहारी भोजन कर सकते है।
गणेश चतुर्थी की पूजा कैसे करें।गणेश चतुर्थी की पूजा करने के लिए घर में गणेश प्रतिमा को लाएं उसे एक साफ़ स्थान पर पीले या लाल रंग के कपडे को बिछाकर उस के ऊपर स्थापित कर दें। सुबह उठकर स्नान करके स्वच्छ कपड़े पहनकर गणेश जी को घी दीपक जलाकर हल्दी ,कुमकुम पुष्प से उनकी पूजा करें और कोशिश करें की उनके पसंदीदा भोजन मोदक का भोग लगाएं अगर वो न हो तो आप लड्डू का भी भोग उन्हें लगा सकते है।और गणेश आरती अवस्य पढ़ें।
गणेश चतुर्थी का त्यौहार मनाने से क्या फायदा होता है। ऐसा माना जाता है की गणेश उत्सव मनाने से घर में सुख शांति, धन समृद्धि, ऐश्वर्य सब बना रहता है।
गणेश चतुर्थी के दिन कौन से रंग के कपड़ें पहने। गणेश चतुर्थी के दिन लाल, पीला,हरा ,मेहरून, गुलाबी,ऑरेंज आदि रंग कपड़ें पहन सकते है।
गणेश चतुर्थी व्रत से लाभ?व्रतधारी के ऊपर सदैव गणेश जी की कृपा बानी रहती है घर में सुख समृद्धि,ऐस्वर्य ,मान सम्मान,पद प्रतिष्ठा,सत्यवादिता हमेशा बनी रहती है।
भगवान् गणेश पूजा के लिए कौन सा दिन अच्छा माना गया है। गणपति के पूजा के लिए बुधवार का दिन सर्वश्रेष्ठ माना गया है।
घर में कितनी गणेश मूर्ति रखें। घर में केवल एक ही गणेश मूर्ति रखना चाहिए।
किस दिशा में रखे गणेश मूर्ति?गणेश मूर्ति विशेष रूप से पूर्व या उत्तर दिशा की ओर स्थापित करना शुभ माना गया है।

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